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जन्माष्टमी व्रतविधि: Janmashtami Vrat Vidhi

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देवा ब्रह्मादयो येन स्वरूपं न विदुस्तव ।  अतस्त्वां पूजयिष्यामि मातुरुत्सङ्गवासिनम् ॥ ब्रह्मादि देवता जो आप के स्वरूप को नहीं जानते हैं, इस लिए माँ के गोद में रहने वाले आप की पूजा करूँगा । अथ पूजा विधी प्रारभ्यते:- प्रातः काल प्रभु स्मरण के साथ उठकर नित्य क्रिया की समाप्ति के पश्चात् शुद्ध चित्त आसानरूढ हो प्राच्योन्मुख(east faced) हो पवित्रा भाव से प्रभु कृपा प्रसादार्थ और पाप ताप के शमन हेतु व्रत का संकल्प ग्रहण करें और उसके पश्चात् यथासंभव अन्न का ग्रहण न करें। वासुदेवं समुद्दिश्य सर्वपापप्रशान्तये ।  उपवासं करिष्यामि कृष्णाष्टम्यां नभस्यहम् ॥ आजन्ममरणं यावद्यन्मया दुष्कृतं कृतम् । तत्प्रणाशय गोविन्द प्रसीद पुरुषोत्तम ॥ तदनंतर इस प्रकार का चित्र या मूर्ति को बनवावे (लगाए) पलंग पर सोई हुई देवकी के स्तनों को पीती हुई श्रीकृष्ण की प्रतिमा को रख कर जयन्ती होने पर तो दूसरी देवकी के गोद में दूसरी श्रीकृष्ण- मूति को रख कर पलंग पर बैठी देवकी के चरण को दबाती हुई लक्ष्मी को रख कर दिवाल आदि में तलवार लिए वसुदेव, नन्द, गोपी और गोपों को बनाकर दूसरी जगह पलंग पर उत्पन्न कन्या के साथ यशोदा की प्रति

क्या पुराणों में बुद्धावतार का वर्णन प्राप्त होने से यह सिद्ध होता है कि, पुराण बुद्धानुयायियों द्वारा रचे गए हैं? Does the description of Buddha avatar prove that the Puranas were composed by the followers of Buddha?

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प्रचलित आक्षेप इस प्रकार है:— वर्तमान पुराणों में बुद्ध का वर्णन आता है। बुद्ध जी लगभग ६०० वर्ष विक्रमपूर्व हुए हैं और व्यास जी महाभारतकालीन व्यक्ति हैं। जिसे पांच हजार वर्ष से अधिक समय हो चुका है। अतः व्यासकृत पुराणों में अपने से परवर्ती व्यक्ति का वर्णन नहीं आ सकता, अवश्य ही ये पुराण बुद्ध के बाद के बने हैं यह स्पष्ट है । अब प्रत्युत्तर देने का समय आन पढ़ा है, सो इस प्रकार उत्तर दिया जा रहा है:— अस्तु इस आक्षेप में पुराणों को नवीन सिद्ध करने के लिए व्यास और बुद्ध के समयों का अन्तर कारण रखा गया है । परन्तु वास्तव में यह हेतु कोरा हेत्वाभास है क्योंकि वेद, पुराण आदि ग्रंथ केवल भूतकाल की घटनाओं के प्रतिपादक नहीं हैं । अपितु — भूतं भव्यं भविष्यच्च सर्वं वेदात्प्रसिद्धयति । ( मनुः १२ । ६७ ) अर्थात् भूत, भविष्यत् वर्तमान सब कुछ वेद से सिद्ध है-इस मनूक्ति के अनुसार वेद तीनों काल का वर्णन करने वाले हैं। जिस प्रकार अनादि वेदों में यास्क आदि वेदाचारिर्यों के निर्णयानुसार वशिष्ठ, विश्वामित्र, शुनःशेप आदि उत्तरकालीन व्यक्तियों का उल्लेख सुव्यवस्थित है, इसी प्रकार त्रिकालदर्शी वेदव्यास जी के बनाय

आगमों का परिचय एवं प्रयोजन निरूपण। Introduction and purpose of the Agamas. #Tantra. #Gyan. #Ved. #Agam_Parichaya. #Sadhna

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तन्त्र या आगम, आजकल सुप्रसिद्ध रूप से वार्ताओं एवं लेखों में दृष्टिगत होता है किंतु फिर भी जन समूह में इनको लेकर इतनी भ्रांति एवं संशय हैं, यह आश्चर्य की बात है। इस के निराकरणार्थ ही हम यह लेख प्रेषित कर रहें हैं, आप सभी पाठकगण इसका अध्ययन कर लाभ को प्राप्त हों। आगामों का उद्गम या प्रदुर्भाव:— वेद के छह अङ्ग है-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष ।  वाराहीतन्त्र में तन्त्रशास्त्र को कल्प के अन्तर्गत माना गया है- कल्पश्चतुर्विधः प्रोक्त आगमो डामरस्तथा । यामलश्च तथा तन्त्रं तेषां भेदाः पृथक् पृथक् ॥ जिसमें सृष्टि-प्रलय मन्त्रनिर्णय यन्त्रनिर्णय, देवतासंस्थान, तीर्थवर्णन, आश्रमधर्म, वर्णव्यवस्था, भूत आदि के संस्थान, ज्योतिष, पुराणाख्यान, शौचाशौचनिर्णय, दानधर्म, युगधर्म, लोकव्यवहार, आध्यात्मिक विषयों का विवेचन हो उसे तन्त्र कहते हैं। निष्कर्ष यह है कि समस्त भौतिक विस्तार और समस्त आध्यात्मिक अनन्त तन्त्र की परिधि में आता है । तन्त्र का एक नाम आगम भी है। आगम शिवमुखोक्त शास्त्र हैं- आगतं शिववक्त्रेभ्यो गतं च गिरिजाश्रुतौ ।  मतं च वासुदेवेन (कार्त्तिकेयेन) तस्मादागम उच्यते ॥ श्रुत

श्री राम जी ने ईश्वर रावण से युद्ध करने के लिए वाराणों की सहायता क्यों ली ????? शिव जी सती जी की मृत देह को उठाकर क्यों विलाप कर रहें थे?????

यही कारण है की बिना गुरु कृपा के एवं कभी शास्त्रों को न देखने के कारण भगवान की अलौकिक लीलाओं को न पहचाना जा सकता है एवं न आनंद ही लिया जा सकता है।   अब प्रत्युत्तर:— 1) भगवान के जन्म का उद्देश्य ही सत्मार्ग का प्रदर्शन एवं सत्पुरुषों का कल्याण होता है, साथ ही साथ दुष्टो का दमन (परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्) - श्रीमद्भगवद्गीता मनुष्य धर्म का निरूपन किया गया है। भगवान को तो किसी कर्म को करने की आवश्कता ही नही हैं फिर भी वे करते हैं इसका उत्तर वे श्री गीता जी में देते हैं:— उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्। सङ्करस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः।। हे पार्थ ! अगर मैं किसी समय सावधान होकर कर्तव्य-कर्म न करूँ (तो बड़ी हानि हो जाय; क्योंकि) मनुष्य सब प्रकारसे मेरे ही मार्गका अनुसरण करते हैं। यदि मैं कर्म न करूँ, तो ये सब मनुष्य नष्ट-भ्रष्ट हो जायँ और मैं वर्णसंकरताको करनेवाला  तथा इस समस्त प्रजाको नष्ट करनेवाला बनूँ।   वैसे भी जिनको लगाता है की स्वप्न में भी भगवान को यदि भय प्राप्त हो सकता है तो लक्ष्मण जी उनके लिए कहते हैं: (भृकुटि बिलास सृष्टि लय होई। सपनेहुँ संकट परइ

A tribute to the legend of the legends: Srinivas Ramanujan

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  (The picture above is taken from a stamp issued by the Indian Post Office to celebrate the 75th anniversary of his birth.)       Srinivasa Ramanujan (श्रीनिवास रामानुजन), the man who knew infinity, an exceptionally gifted young Indian mathematician , who shook the whole world with his theories that still are mystery to present day mathematicians. He was born in a Brahmin family in Erode,Madras (now Chennai) on the date 22 December 1887 . His father worked as a clerk in a cloth merchant's shop. Ramanujan entered the Town High School in Kumbakonam in January 1898 . In 1900 he began to work on his own on mathematics summing geometric and arithmetic series. Ramanujan was shown how to solve cubic equations in 1902 and he went on to find his own method to solve the quartic. The following year,he tried to solve the quintic that could not be solved even by radicals. It was in the Town High School that Ramanujan came across a mathematics book by G S Carr called Synopsis of elementary re

ग्रहण काल में कर्तव्यायाकर्तव्य. Do's and Don'ts during the time of grahan (eclipse)

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ग्रहण के समय करने योग्य कार्यों का निरूपण:— ग्रहण के समय भगवान का चिंतन, जप, ध्यान करने पर उसका लक्ष (लाख) गुना फल मिलता है , ग्रहण के समय सहस्र काम छोड़ कर मौन और जप करिए। (सांसारिक वार्तालाप में समय नष्ट न करें भगवान के नामों का संकीर्तन करें।) ग्रहण के समय अपने घर की चीज़ों में कुश, तुलसी के पत्ते अथवा तिल डाल देने चाहिए। ग्रहण के समय रुद्राक्ष की माला धारण करने से पाप नाश हो जाते हैं। ग्रहण के समय गुरु प्रदत्त मंत्र (दीक्षा लिए हुए मंत्र) का जप करने से सिद्धि की प्राप्ति होती है। ग्रहण के समय न करने कार्यों का निरूपण:— ग्रहण के समय सोने से रोग बढ़ते हैं। ग्रहण के समय सम्भोग करने से सूकर ( सुअर) की योनि मिलती है। ग्रहण के समय मूत्र त्याग नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे दरिद्रता आती है।  ग्रहण के समय छल कपट धोखाधड़ी और ठगाई करने से सर्पयोनि मिलती है। ग्रहण के समय शौच नहीं जाना चाहिए, अन्यथा उदर में कृमि होने लगते हैं। ग्रहण के समय जीव-जंतु या किसी की हत्या हो जाय तो नारकीय योनि में जाना पड़ता है। ग्रहण के समय भोजन व मालिश करने वाले को कुष्ट रोग हो जाता है। ग्रहण के समय पत्ते, तिनके, लकड

शस्त्र पूजन वैदिक विधि

शस्त्र पूजन विधि पहले दशमी के दिन मां दुर्गा जी के षोडशोपचार पुजा करना है १) प्रातः काल शौच्यादि के बाद २) मंदिर में मां दुर्गा जी के चित्र वा प्रतिमा के साथ गोलाकार पींड जो आटे या गोबर या कवेल मिट्टी के हो उसे यथा शक्ति जो भी स्थापित कर सकते हैं ३) अब कम से कम पंचोपचारिक पदार्थ से पूजन करना चाहिए (आसन धुप दीप पुष्प और नैवेद्य ) दुर्गा षोडशोपचार पूजन दैनिक गणेश पुजा पवित्र करणं ॐ‌ अपवित्रः पवित्रो वा इति मंत्रेण पवित्र करणं आचमन प्राणायाम संकल्पं घंटानादम् आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु रक्षसाम् । घण्टारवं करोम्यादौ देवताह्वान लाञ्छनम्।। शंख पुजा ॐ पंचजन्याय विद्महे पद्मगर्भाय धीमहि तन्नो शंख: प्रचोदयात्।। स्वस्ति मन्त्र: ॐ भद्रं कर्णेभि शृणुयाम देवा:। भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्रा:।। स्थिरै रंगै स्तुष्टुवां सहस्तनुभि::। व्यशेम देवहितं यदायु:। ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:। स्वस्ति न स्तार्क्ष्र्यो अरिष्ट नेमि:।। स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।2। करन्यास /अंगन्यास । ॐ दंअंगुष्ठाभ्यां नम: - हृदयाय नम:। ॐ दुं तर्जनीभ्यां नम: - शिरसे स्वाहा। ॐ दु़ं मध्यमाभ्यां नम: -

गर्भपात/भ्रूणहत्या: महापाप: Abortion/Foeticide : Biggest sin

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👉 गर्भहत्या: इस महापाप को करने वाले मनुष्य की क्या गति होती है?   यत्पापं ब्रह्महत्याया द्विगुणं गर्भपातने ।  प्रायश्चित्तं न तस्यास्ति तस्यास्त्यागो विधीयते ॥ (पाराशरस्मृति ४।२०) ब्रह्महत्यासे जो पाप लगता है, उससे दुगुना पाप गर्भपात करनेसे लगता है। इस गर्भपातरूपी महापापका कोई प्रायश्चित्त भी नहीं है, इसमें तो उस स्त्रीका त्याग कर देनेका ही विधान है। भ्रूणहा पुरहन्ता च गोघ्नश्च मुनिसत्तमाः ।  यान्ति ते रौरवं घोर योच्छ्वासनिरोधकः ॥ (ब्रह्मपुराण २२।८) भ्रूणहत्या करनेवाले रोध (श्वासोच्छ्वासको रोकनेवाला), शुनीमुख, रौरव आदि नरकोंमें जाते हैं। भिक्षुहत्यां महत्पापी भ्रूणहत्यां च भारते।  कुम्भीपाके वसेत् सोऽपि यावदिन्द्राश्चतुर्दश ॥  गृधो जन्मसहस्राणि शतजन्मानि सूकरः ।  काकश्च सप्तजन्मानि सर्पश्च सप्तजन्मसु ।।  षष्टिवर्षसहस्त्राणि विछ्यां जायते कृमिः ।  नानाजन्मसु स वृषस्ततः कुष्ठी दरिद्रकः ॥ (देवीभागवत ९ । ३४ । २४, २७-२८) गर्भकी हत्या करनेवाला कुम्भीपाक नरकमें गिरता है फिर गीध,सूअर, कौआ और सर्प होता है फिर विष्ठाका कीड़ा होता है। फिर बैल होनेके बाद कोढ़ी मनुष्य होता है। पूर्वे जनुषि या नारी

एकादशी व्रत कैसे करें? क्या करें क्या न करें? सम्पूर्ण दिनचर्या कैसे रहे? How to do Ekadashi Vrat? What to do and what not? How should be the whole routine? #ekadashi #vrat

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🌸  Ekadashi special post🌸 सम्पूर्ण दिनचर्या का उल्लेख किया जायेगा। इससे जानने के बाद किसी प्रकार का व्रत विधि को लेकर संशय नहीं रहेगा। अस्तु एकदाशी का व्रत दशमी से ही प्रारम्भ हो जाता है ~दशमी के दिन रात के समय भोजन नहीं करना चाहिए। ~एवं दशमी को प्याज़ लहसुन भी वर्ज दें। एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व ही उठना चाहिए ब्रह्ममुहुर्त में। ब्राह्मे मुहूर्ते उत्तिष्ठेत्स्वस्थो रक्षार्थमायुषः । (अष्टांगहृदय, सूत्र २।१)  स्वस्थ मनुष्यको आयुकी रक्षाके लिये ब्राह्ममुहूर्तमें उठना चाहिए। सूर्येण ह्यभिनिर्मुक्तः शयानोभ्युदितश्च यः ।  प्रायश्चित्तमकुर्वाणो युक्तः स्यान्महतैनसा ॥ (भविष्यपुराण, ब्राह्म० ४।९० ) जिसके सोते-सोते सूर्योदय अथवा सूर्यास्त हो जाय, वह महान् पापका भागी होता है और बिना प्रायश्चित्त (कृच्छ्रव्रत) - के शुद्ध नहीं होता। ~भगवान का स्मरण करें भूमि को प्रणाम करें तत्पश्चात् शुद्ध हों जाएं। ~मल मूत्र का त्याग करें पुनः शुद्ध हो जाएं। ☀️ अब प्रश्न brush ( दतुवन) दंतधावन को लेकर उपस्तिथ होता है क्या ब्रश करें या दतुवन अर्थात् मुख की शुद्धि कैसे हो? तो जान लेना चाहिए की गलती से भी bru

"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।" Know the real meaning of this shlok. इस श्लोक का वास्तविक अर्थ जानें। #geeta. #shankarbhashya. #18.66

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              सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।          अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।                     🌺(श्रीमद्भगवद्गीता 18.66)🌺 ☀️मुमुक्षु जन( मोक्ष की इच्छा रखने वाले व्यक्ति) निश्चित रूप से इस सम्पूर्ण पोस्ट को पढ़ें।☀️ अस्तु   सर्वधर्मान् सर्वे च ते धर्माः च सर्वधर्माः तान्। धर्मशब्देन अत्र अधर्मः अपि गृह्यते नैष्कर्म्यस्य विवक्षितत्वात् 'नाविरतो दुश्चरितात्' (क० उ० १।२।२४) 'त्यज धर्ममधर्मं च' (महा० शान्ति० ३२९। ४० ) इत्यादिश्रुतिस्मृतिभ्यः । ----समस्त धर्मोको, अर्थात् जितने भी धर्म हैं उन सबको, यहाँ नैष्कर्म्य (कर्माभाव ) का प्रतिपादन करना है इसलिये 'धर्म' शब्दसे अधर्मका भी ग्रहण किया जाता है। 'जो बुरे चरित्रोंसे विरक्त नहीं हुआ धर्म और अधर्म दोनोंको छोड़ इत्यादि श्रुति स्मृतियोंसे भी यही सिद्ध होता है। सर्वधर्मान् परित्यज्य सन्न्यस्य सर्वकर्माणि इति एतत् । माम् एकं सर्वात्मानं समं सर्वभूतस्थम् ईश्वरम् अच्युतं गर्भजन्मजरामरणविवर्जितम् अहम् एव इति एवम् एकं शरणं व्रज न मत्तः अन्यद् अस्ति इति अवधारय इत्यर्थः। सब धर्मोंको छोड़कर