एकादशी व्रत कैसे करें? क्या करें क्या न करें? सम्पूर्ण दिनचर्या कैसे रहे? How to do Ekadashi Vrat? What to do and what not? How should be the whole routine? #ekadashi #vrat


🌸 Ekadashi special post🌸


सम्पूर्ण दिनचर्या का उल्लेख किया जायेगा।

इससे जानने के बाद किसी प्रकार का व्रत विधि को लेकर संशय नहीं रहेगा।


अस्तु


एकदाशी का व्रत दशमी से ही प्रारम्भ हो जाता है

~दशमी के दिन रात के समय भोजन नहीं करना चाहिए।

~एवं दशमी को प्याज़ लहसुन भी वर्ज दें।


एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व ही उठना चाहिए ब्रह्ममुहुर्त में।


ब्राह्मे मुहूर्ते उत्तिष्ठेत्स्वस्थो रक्षार्थमायुषः ।

(अष्टांगहृदय, सूत्र २।१) 

स्वस्थ मनुष्यको आयुकी रक्षाके लिये ब्राह्ममुहूर्तमें उठना चाहिए।


सूर्येण ह्यभिनिर्मुक्तः शयानोभ्युदितश्च यः । 

प्रायश्चित्तमकुर्वाणो युक्तः स्यान्महतैनसा ॥

(भविष्यपुराण, ब्राह्म० ४।९० )

जिसके सोते-सोते सूर्योदय अथवा सूर्यास्त हो जाय, वह महान् पापका भागी होता है और बिना प्रायश्चित्त (कृच्छ्रव्रत) - के शुद्ध नहीं होता।


~भगवान का स्मरण करें भूमि को प्रणाम करें तत्पश्चात् शुद्ध हों जाएं।

~मल मूत्र का त्याग करें पुनः शुद्ध हो जाएं।


☀️अब प्रश्न brush ( दतुवन) दंतधावन को लेकर उपस्तिथ होता है क्या ब्रश करें या दतुवन अर्थात् मुख की शुद्धि कैसे हो?


तो जान लेना चाहिए की गलती से भी brush नहीं करना है।

वे जूठन ही होती है पिछले दिवस का उच्छिष्ट खाने समान ही है, उसी समय व्रत भंग हो जायेगा।

अब बात है दंतधावन की तो किसी भी पेड़ का लता का छेदन भेदन व्रती नही कर सकता अर्थात् ये भी नहीं करना है।


उपवासदिने यस्तु दन्तधावनकृन्त्ररः स घोरं नरकं याति व्याघ्रभक्षश्चतुर्युगम् ॥

(वाधूलस्मृति ३३)

उपवासके दिन दातुन नहीं करनी चाहिये, अन्यथा नरक की प्राप्ति होती है।

तो मुख की शुद्धि के लिए 12 या 16 कुल्हा ( gargles) का विधान है।~नित्य


अभावे दन्तकानां प्रतिषिद्धदिनेषु च। 

अपां द्वादशगण्डूषैर्मुखशुद्धिं समाचरेत् ॥

(लघुहारीतस्मृति ४ । ११ ) 


अलाभे दन्तकाष्ठानां प्रतिषिद्धदिनेष्वपि। 

अपां षोडशगण्डूषैः मुखशुद्धिर्भविष्यति ॥

(वाधूलस्मृति ३७)

उपवास वाले दिन इतने ही और करलेने चाहिए , अर्थात् कुल 32 कुल्हा।


👉फिर स्नान कर पवित्र हो भगवान के समक्ष जाकर उन्हें जगाए एवं प्रणाम करें।


वस्त्र का निर्णय इस प्रकार है :—

पीताम्बर( पीले वस्त्र) अतिश्रेष्ठ है।

ध्यान रहे काला, नीला, लाल वस्त्र विशेष रूप से त्याग दें।


न चापि रक्तवासाः स्याच्चित्रासितधरोऽपि वा ।

(मार्कण्डेयपुराण ३४ । ५४)

( ब्रह्मपुराण २२१ । ५३)

 न रक्तमुल्यणं वासो न नीलं तत्प्रशस्यते ॥

 (नरसिंहपुराण ५८ । ७२)

अधिक लाल, रंगबिरंगे, नीले और काले रंगके वस्त्र धारण करना उत्तम नहीं है।


👉तिलक लगा शिखा बांधकर संध्या ( वैदिक या पौराणिक अधिकाराणुसार) करें , 


फिर भगवान के लिए सम्पूर्ण दिवस शक्ति अनुसार व्रत करने का संकल्प लें।


संकल्प:—

संस्कृत में

विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य अमुकक्षेत्रे बौद्धावतारे

अमुकसंवत्सरे अमुकायने अमुक ऋतौ महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुक तिथौ अमुकनक्षत्रे अमुक अमुकयोगे अमुककरणे

 अमुकगोत्रोत्पन्नोऽहं अमुक नामः सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं अमुकएकदश्या: व्रतमहं करिष्ये ।



हिन्दी मे


विष्णु विष्णु विष्णु।

आज( महीना , पक्ष, तिथि, वार) नक्षत्र, योग , करण में मै ( गोत्र) (नाम) इस व्रत/पूजा / आदि को करने का संकल्प लेता हूं और यथाशक्ति यथामति आप ही मेरे रक्षक है भगवन् आपकी कृपा से प्रभो इसे पूर्ण कर सकूं और अभीष्ट फल की सिद्धि हो आपकी कृपा प्राप्त हो प्रसन्न होहिए प्रभो।



तदनंतर भगवान का पूजन करें( पंचोपचार, षोडषोपचार इत्यादि) विविध प्रकार से।

प्रदक्षिणा,आरती अवश्य करें।


एकादशी की कथा विशेष रूप से पढ़ें।


अब प्रश्न आता है क्या खाएं और क्या न?

ये प्रश्न ही अयोग्य है क्योंकि व्रत में तो ये प्रश्न होना चाहिए की आज कितना भगवान का सुमिरन करें? कितना नामजप करें? किस प्रकार पूजन करें? क्या अर्पित करें? कैसे प्रसन्न करें?



तो खाने का निर्णय इस प्रकार है:-

1) प्रयास करें एकादशी व्रत निर्जला रखने का यदि पूरा दिन निर्जला नहीं रह सकते तो सूर्योदय से सूर्यास्त तक निर्जला रहें.


2) यदि यह ही नहीं होता तो रात में एक बार फलाहार कर ले इतना भी नहीं तो दिन में भी एक बार फलाहार कर सकते हैं।


3) और यदि कुछ नहीं होता तब मात्र फलाहार करें किंतु पूर्ण प्रयास रहे कि भोजन ना करें, अन्न ग्रहण ना करें क्योंकि कथा में वर्णन है कि इस दिन अन्न खाने वाला चांडाल के समान है।


~रोगी, अबोधबालक, पीड़ित जो व्रत करने में असमर्थ हैं यह सभी एकादशी का व्रत करने का प्रयास करें जितनी देर संभव हो सके।


इस प्रकार व्रत करता हुआ पुरुष सभी इंद्रियों को जीतकर सम्पूर्ण दिवस व्यतीत करें, भगवान का स्मरण,रूप ध्यान, एवं नामजप जप करें।


क्षमा सत्यं दया दानं शौचमिन्द्रियनिग्रहः । 

देवपूजाग्निहरणं सन्तोषोऽस्तेयमेव च ॥ 

सर्वव्रतेष्वयं धर्मः सामान्यो दशधा स्मृतः ।

(अग्निपुराण १७५ । १०-११)


क्षमा, सत्य, दया, दान, शौच, इन्द्रिय-संयम, देवपूजा, अग्रिहोत्र, सन्तोष तथा चोरी न करना-ये दस नियम सम्पूर्ण व्रतोंमें आवश्यक माने गये हैं।

रात्रि में जागरण अति उत्तम है।

सम्पूर्ण रात्रि भगवान का पूजन कीर्तन कर सूर्योदय से पूर्व पुनः स्नान कर भगवान का अर्चन करें।

दानादि विशेष रूप से करना चाहिए (समर्थ्यानुसार)


यदि सम्पूर्ण दिवस जागरण न हो पाए तो जितने समय के लिए जाग पाए उतना करें तत्पश्चात् निद्रा उपरांत ब्रह्म मुहूर्त में ही अगले दिन उठे।



👉फिर पारण काल के अनुसार जल अन्न ग्रहण कर स्वयं का व्रत पूर्ण करें।



उपवास के समय आवश्यक सावधानियां:—


असकृज्जलपानाच्च ताम्बूलस्य च भक्षणात्। 

उपवासः प्रदुष्येत दिवास्वनाच्च मैथुनात्।।

 (अग्निपुराण १७५।९)

अनेक बार जल पीनेसे, पान खानेसे, दिनमें सोनेसे और मैथुन करनेसे उपवास (व्रत) दूषित हो जाता है।


अष्टौ तान्यव्रतानि आपोमूलं घृतं पयः हविर्ब्राह्मणकाम्या च गुरोर्वचनमौषधम् ॥

(वृद्धगौतमस्मृति १४ ।८)

जल, फल, मूल, दूध, हविष्य (घी), ब्राह्मणकी इच्छापूर्ति, गुरुका वचन तथा औषध-ये आठ व्रतके नाशक नहीं हैं।


कांस्यं मांसं मसूरं च चणकं कोरदूषकम् ॥ 

शाकं मधुपरान्नं च त्यजेदुपवसन् स्त्रियम्।

 पुष्पालङ्कारवस्त्राणि धूपगन्धानुलेपनम् ॥

 उपवासे न शस्यन्ति दन्तधावनमञ्जनम् ।

(अग्रिपुराण १७५। ६–८)

उपवास करनेवाले मनुष्यको काँसेका बर्तन, मसूर, चना, कोदो, साग, मधु, पराया अन्न तथा स्त्रीसंगका त्याग करना चाहिये। उसे फूल, अलंकार, सुन्दर वस्त्र, सुगन्ध, दातुन आदिका भी त्याग कर देना चाहिये।


उपोषितैर्नरैस्तस्मात्स्नानमध्यङ्गपूर्वकम्।

वर्जनीयं प्रयत्नेन रूपघ्न तत्परं नृप।।

(मत्स्यपुराण ११५ । १४)

उपवासके दिन शरीरमें तेल लगाकर नहाना छोड़ दे; क्योंकि १ यह कुरूप बनानेवाला (सौन्दर्यका विनाशक) है।



🌸इस प्रकार विधिवत् एकादशी का व्रत करता मनुष्य इहलोक एवं परलोक दोनों में सुख पाता है और अंत में भगवद्धाम को प्राप्त होता है।

जो एकादशी का व्रत करता है उसके लिए कुछ भी असाध्य नही एवं मन सहित दशो इंद्रियों को जीता वह उत्तम भक्ति को प्राप्त होता है साथ ही विरक्ति एवं ज्ञान को पा लेता है।🌸



☀️इस व्रत में किसी भी त्रुटि के लिए भगवान से क्षमा प्रार्थना करलें।

क्षमा प्रार्थना मंत्र:—


अपराध सहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।

दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥ १ ॥

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।

पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेशवरि॥ २ ॥

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ॥ ३ ॥ 

अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् ।

यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः ॥ ४ ॥

सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके ।

इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ॥ ५ ॥

अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम् ।

तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ॥ ६ ॥

कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे ।

गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ॥ ७ ॥

गुह्यातिगुह्यगोत्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।

सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि ॥ ८॥


तत् सत् ब्रह्मार्पणमस्तु

श्री कृष्णार्पणमस्तु

(अतः अपने सभी कर्मों को भगवान को समर्पित करना)


व्रतों में श्रेष्ठ है एकादशी का व्रत इसलिए हर पक्ष की एकादशी का व्रत करना चाहिए।


नारायणयेति समर्पयामि

~नारायण

















Comments

  1. श्रेयम गुप्ताOctober 15, 2022 at 5:56 PM

    🪷🪷🪷🪷🪷नारायण🪷🪷🪷🪷🪷

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  2. नारायण 🙏🌺

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  3. https://youtube.com/shorts/tCxKYQHA7hM?si=DX5yNj2l3z2gtD7D

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