What's the meaning of "Arya"? आर्य शब्द का क्या अर्थ होता है? Who can be called an arya? आर्य किसे कहा जा सकता है? What must be the qualities gained to called a arya? आर्य कहलाने के गुण? #arya #aryameaning "aryaqualities #aryavart



1.) आर्य शब्द का अर्थ क्या होता है?

आर्य का अर्थ श्रेष्ठ पुरुष से है। 
अब सविस्तार एवं शास्त्रोक्त प्रमाणों सहित जानते हैं:—

अस्तु



शब्दकल्पद्रुमे
आर्य्यः। त्रि, (अर्त्तुं प्रकृतमाचरितुं योग्यः । अर्य्यते वा ॥ ऋ + ण्यत् ।) सत्कुलोद्भवः । इत्यमरः । पूज्यः । श्रेष्ठः ।


अमरकोशे
 - महाकुलकुलीनार्यसभ्यसज्जनसाधवः।(2.7.3)

जो आकृति-प्रकृति, सभ्यता- शिष्टता, धर्म-कर्म, ज्ञान-विज्ञान, आचार विचार तथा शीलस्वभाव में सर्वश्रेष्ठ हो उसे "आर्य" कहते हैं।


2.)आर्य शब्द किसके लिए प्रयुक्त होता सकता है? किसे आर्य कहा जा सकता है?


अनार्यमार्यकर्माणमार्यं चानार्यकर्मिणम्। 
सम्प्रधार्याब्रवीद् धाता न समौ नासमाविति॥ 

इस मनुवचन (१०.७३) पर लिखित भाष्यों में भी स्वीकृत है की आर्य का अर्थ द्विज होता है ।


आर्य शब्द का प्रयोग तो मुख्यतः वैश्य के लिए भी नहीं होता है। 


अर्यः स्वामिवैश्ययोः 
(पा.सू. ३।१।१०३)

यह व्याकरण सूत्र है। 

जब अर्थ 'स्वामी' या 'वैश्य' होता है तब 'आर्य' का प्रयोग न होकर 'अर्य' का प्रयोग होता है। आर्य शब्द ब्राह्मण और क्षत्रिय के लिए रूढ़ है। हाँ, परन्तु कहीं-कहीं इसका गौणार्थ या यौगिक-प्रयोग भी देखा जाता है।



वेदों से प्रमाण:—

आर्य वास्तव में द्विजातिमात्र के लिए प्रयुज्य है।

यदि मनुस्मृति में आस्था नहीं और वेदों में तथाकथित आस्था है तो भी वेदों से प्रमाण देते हैं अब:


'उत शूद्र उतार्ये
(अथर्व. १९।६२।१)। 

अतः आर्य शब्द का प्रयोग मात्र द्विजातिओ के लिए किया जा सकता हैं इसी वेदादी शास्त्रों की आज्ञा है


अहं भूमिमददामायार्य । 
(ऋग्वेद ४.२६.२)

यहां भी राजाओं को आर्य कहा गया है।


आर्य ईश्वरपुत्रः 
(निरुक्त अ० ६ खण्ड २६ )

ईश्वर का पुत्र आर्य है।


सर्वेवेदभाष्यकार श्री सायणाचार्य जी ने अपने ऋग्भाष्य में 'आर्य' का अर्थ विज्ञ, यज्ञ का अनुष्ठाता, विज्ञ स्तोता, विद्वान् आदरणीय अथवा सर्वत्र गंतव्य, उत्तमवर्ण, मनु, कर्मयुक्त और कर्मानुष्ठान से श्रेष्ठ आदि किया है।


लोको ह्यार्यगुणानेव भूयिष्ठं तु प्रशंसति ।।
(महाभारत)

संसार के लोग आर्य गुणवाले (उत्तम गुणवाले) पुरुष की ही अधिक प्रशंसा करते हैं।


आर्यरूपसमाचारं चरन्तं कृतके पथि ।
सुवर्णमन्यवर्णम् वा स्वशीलं शास्ति निश्चये ।।
(महाभारत)

जो कृत्रिम मार्ग का आश्रय लेकर आर्यों (श्रेष्ठ पुरुषों) के अनुरूप आचरण करता है, वह खरा सोना है या काँच, इसका निश्चय करते समय उसका स्वभाव ही सब कुछ बता देता है। 




3.)आर्य कहलाने अथवा नाम के आगे लगाने के लिए व्यक्ति में कौन-कौन से गुण होने अनिवार्य है?



ज्ञानी तुष्टश्च दान्तश्च सत्यवादी जितेन्द्रियः ।
 दाता दयालुर्नम्रश्च स्यादार्यो ह्यष्टभिर्गुणैः ।। 
(भगवान वेद व्यास)

जो ज्ञानी हो, सदा सन्तुष्ट रहनेवाला हो, मन को वश में करनेवाला हो, सत्यवादी जितेन्द्रिय, दानी, दयालु और नम्र हो, वह आर्य कहलाता है।


अभ्यासाद् धार्यते विद्या, कुलं शीलेन धार्यते । 
गुणेन ज्ञायते त्वार्य:, कोपो नेत्रेण गम्यते ।। 
(चाणक्य नीति 5.8)

आचार्य कहते हैं की गुणों के द्वारा जाना जाता है आर्य अर्थात् उसी से उसकी श्रेष्ठा सिद्ध होती है और वह पूजा योग्य कहलाता है।


कर्तव्यमाचरन् कार्यम्, अकर्तव्यमनाचरन्  
तिष्ठति प्रकृताचारे स तु आर्य इति स्मृतः ।। 
(वसिष्ठस्मृति)

आर्य वह कहलाता है जो कर्त्तव्य कर्म का सदा आचरण करता और अकर्त्तव्य कर्म अर्थात् पापादि से दूर रहता हो और जो पूर्ण सदाचारी हो।


आर्यः - पूज्यः श्रेष्ठः धार्मिकः धर्मशीलः मान्यः उदारचरितः शान्तचित्तः न्यायपथावलम्बी सततं कर्तव्य-कर्मानुष्ठाता यथोक्तम् ।
(संस्कृत कोषाः)

आर्य का अर्थ सद्गुणों के कारण पूजनीय, श्रेष्ठ, धर्मात्मा, धर्मयुक्त स्वभाव और आचरणवाला, माननीय, जातिभेद, वर्ण वा रङ्गभेद आदि संकुचित भावनाओं का परित्याग करके जो उदार चरित्र वाला है, जिसके अन्दर संकीर्णता नहीं है, ईश्वरभक्ति तथा भगवान् में पूर्ण विश्वास के कारण जिसका चित्त सदा शान्त रहता है, जो न्याय के मार्ग का सदा अवलम्बन करता और कभी अधर्म में प्रवृत्त नहीं होता, जो कर्त्तव्य कर्म का सदा अनुष्ठान करता है।


☀️इतने गुणों से संपन्न व्यक्ति ही नाम के आगे आर्य लगा सकता है अथवा नाम मात्र का आर्य लगाने से कोई अंतर नही पड़ता।




एक और अति महत्वपूर्ण बात:—


इन्द्रं॒ वर्ध॑न्तो अ॒प्तुर॑ कृ॒ण्वन्तो॒ विश्व॒मार्यम् । अ॒प॒घ्नन्तो॒ अरा॑व्णः।।
(ऋग्वेद 9.63.5 )

और जैसे राम जी को आर्य कहा गया है

सर्वदाभिगतः सद्भिः समुद्र इव सिन्धुभिः ।
आर्यः सर्वसमश्चैव सदैव प्रियदर्शनः ।।
(बालकाण्ड 1.16)

प्रभु श्री राम आर्य, धर्मात्मा, सदाचारी, सबको समान दृष्टि से देखनेवाले और चन्द्र की तरह प्रिय दर्शनवाले थे।


और अन्यत्र भी जो वेदों स्मृतियो इतिहास पुरणादि मे आर्य शब्द आया है वो किसी समाज विशेष के लिए नही है।

क्योंकि समाज की स्थापना 1875 मे हुई थी।

किंतु वेद तो अनादि है , इतिहास तो युगों पूर्व का है तो उसमे जो आर्य शब्द आया है वो किसी समाज विशेष के लिए किस प्रकार प्रयुक्त हो सकता हैं???


🌺अतः वहां आर्य किसी व्यक्ति या समाज विशेष का प्रतीक नही अपितु श्रेष्ठा के अर्थ में आया है।





🌸इस प्रकार हमने सविस्तार एवं शास्त्रोक्त प्रमाण सहित "आर्य" शब्द से संबद्ध प्रश्नों का उत्तर दिया।🌸













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