Is Shri Radha ji mentioned in shastras? Is she creation of jaydev goswami? क्या श्री राधा जी का वर्णन शास्त्रों में आता है? क्या वे जयदेव गोस्वामी की कल्पना थी? #shriradha #radhakrishna

 




सर्वप्रथम हम पुराणों से प्रमाण देंगे तत्पश्चात् वेदों से एवं अन्त कई प्रश्नों का उत्तर , कृपया सारी पोस्ट पढ़े 

🌺राधे राधे🌺



या राधा जगदुद्भवस्थितिलयेष्वाराध्यते वा जनैः, शब्दं बोधयतीशवक्त्रविगलत्प्रेमामृतास्वादनम् । 

(ब्रह्माण्डपुराण, मध्यभाग, अध्याय ४३, श्लोक ०८)


जगत् की उत्पत्ति, दशा और विनाश के समय जिसे '""राधा""' नाम से पूजा जाता है, वह रसों की स्वामी, रसों की स्वामी और सबका मार्गदर्शन करने वाली राधा सदा मेरी रक्षा करती है।


राधा भजति तं कृष्णं स च ताञ्च परस्परम् । 

उभयोः सर्वसाम्यं च सदा सन्तो वदन्ति च ॥ 

(ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृतिखण्ड, अध्याय ४८, श्लोक ३८)


राधा श्री कृष्ण की पूजा करती हैं और कृष्ण श्रीराधा की स्तुति करते हैं। उनके बीच हमेशा सामंजस्य रहता है, ऐसा संतों का वचन है।


वृषभानस्य वैश्यस्य कनिष्ठा च कलावती ।

भविष्यति प्रिया राधा तत्सुता द्वापरान्ततः ।। 

( शिव पुराण 2/3/2/20)


द्वापर के अंत में सबसे छोटी कन्या कलावती से  राधाजी का प्राकट्य होगा।

और इसी का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी है:


वृषभानोश्च वैश्यस्य सा च कन्या बभूव ह ।

अयोनिसम्भवा देवी वायुगर्भा कलावती ॥

( ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खण्ड, अध्याय 49 , श्लोक 34 )


कापि तेम समं याता कृतपुण्या मदालसा । 

पदानि तस्याश्चैतानि धनान्यल्पतनूनि च ।।

(विष्णु पुराण ५ -१३-३२ )



पुष्पावचयमत्रोच्चैश्वक्रे दामोदरो ध्रुवम् ।

येनाग्राक्रान्तिमात्राणि पदान्यत्र महात्मनः ।।

(विष्णु पुराण ५- १३-३३ )


इन श्लोकों द्वारा भी राधा जी के मनोहर स्वरूप की स्तुति  की गई है। 

 

श्री किशोरी ( राधा ) जी की पूजा के बिना तो कृष्ण जी की पूजा संपन्न ही नही होती:—


कृष्णार्चाया नाधिकारो यतो राधार्चनं विना ।

 वैष्णवैस्सकलैस्तस्मात् कर्तव्यं राधिकार्चनम्॥ 

(श्रीमद्देवीभागवत महापुराण, स्कन्ध- ०९, अध्याय ५०, श्लोक १६)


श्रीराधा जी की पूजा किए बिना व्यक्ति को श्रीकृष्ण की पूजा करने का भी अधिकार नहीं है, इसलिए राधाजी की पूजा करना वैष्णवों का कर्तव्य है।


व्रतिना कार्तिके मासि स्नातस्य विधिवन्मम ।

गृहाणार्घ्यं मया दत्तं राधया सहितो हरे॥ 

(पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय ९३, श्लोक १० )


हे श्रीहरि! आप मेरे द्वारा कार्तिकमास स्नान के दौरान विधिपूर्वक दिए गए इस अर्घ्य को ""राधाजी के साथ"" स्वीकार करें।


कथं लिखसि राधे त्वं कथं दुःखं करोषि हि ।

 सर्वां तस्मै वदिष्यामि व्यथां त्वल्लेखनं विना ॥ 

  (गर्गसंहिता, मथुराखण्ड, अध्याय १८, श्लोक १७-२२ )


हे राधे! आपको कुछ भी लिखने की आवश्यकता क्यों है? तुम भी शोक क्यों करते हो? मैं जाकर आपके हृदय की सारी बातें श्रीकृष्ण को बताऊंगा।


कृष्ण गेहे स्थिता राधा राधा गेहे स्थितो हरिः।

जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।

श्री राधारानी भगवान श्रीकृष्ण के शरीर में और भगवान श्रीकृष्ण श्री राधारानी के शरीर में निवास करते हैं, इसलिए मेरे जीवन का हर क्षण श्री राधा-कृष्ण की शरण में व्यतीत होना चाहिए।


जलान्तकेलिकारिचारुराधिकाङ्गरागिणी स्वभर्तुरन्यदुर्लभाङ्गसङ्गतांशभागिनी स्वदत्तसुप्तसप्तसिन्धुभेदनातिकोविदा

धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा ॥६॥

(श्रीमज्जगद्गुरु आद्य शंकराचार्य जी द्वारा विरचित यमुनाष्टकम्)

देवी यमुना को नमस्कार, आपका नदी-शरीर सुंदर """राधारानी""" के स्पर्श से रंगा हुआ है जो आपके जल (श्रीकृष्ण के साथ) के भीतर खेलती थी।


येषां श्रीमद्यशोदासुत पदकमले नास्ति भक्तिर्नराणां येषां माभीरकन्याप्रियगुणकथने नानुरक्ता रसज्ञा ।

 येषां श्रीकृष्णलीलाललितरसकथा सादरौ नव कर्णी ""धिक्तां-धिक्तां धिकेतान्""" कथयति सततं कीर्तनस्थोमृदंगः ।।

( चाणक्य नीति )

आचार्य कहते है की 

धिक्कार है उन्हें जो राधा जी के पदकमलों में प्रीति नही जिन्हे उनमें भक्ति नहीं। धिक्कार है उन्हें जिनको भगवान् श्री कृष्ण जो माँ यशोदा के लाडले है उन के चरण कमलो में कोई भक्ति नहीं. मृदंग की ध्वनि धिक् तम धिक् तम करके ऐसे लोगो का धिक्कार करती है.


मुखमरुतेन त्वं कृष्ण गोराजो राधिका अपानयन | 

एतसम बल्लाविनं अन्यासम अपि गौरवम् हरसी ||

सातवाहन वंश (पहली शताब्दी ईसा पूर्व) के राजा शालिवाहन( हाल) द्वारा गाथा सप्तशती में राधा और कृष्ण का उल्लेख है।




अब वेदों एवं वेदांत से प्रमाण :—


सर्ववेदभाष्यकार पूज्य सायणाचार्य जी "राधा" का अर्थ इस प्रकार लिखते हैं: -

 समृद्धि, धन (ऋग्वेद संहिता ( 1/30/5 ) और

अथर्ववेद स.(20/45/2) मे

जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष शब्द की प्राप्ति के सहायक है उसे भक्ति कहा जा सकता है, भक्ति के रूप में भी "राध वृद्धौ" द्वारा अ उपसर्ग के साथ भक्ति जो कि आराधयति है।


श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यौ अहोरात्रे पार्श्वे ।। 

(शुक्ल यजुर्वेद 31 / 19 )

हरिव्यासदेव जी ने वेदान्तकामधेनु "सिद्धान्तरत्नावली" की अपनी टिप्पणी में श्री को राधा के रूप में लिया क्योंकि यह ऐश्वर्य का द्योतक है और लक्ष्मी को लक्ष्मी के रूप में दर्शाता है।


अतारिषुर्भरतागव्यवः समभक्त विप्रः सुमतिं नदीनाम् । प्रपिन्वध्वमिषयन्तीः सुराधा आवक्षणाः पृणध्वं यातशीभं ॥

 ( ऋ० ३|३३|१२ )


आचार्य नीलकंठ जी इसका भाष्य इस प्रकार करतें है:—

शीभं शेतेस्मिन् सर्वमिति शी : भाति स्वयंज्योतिष्ट्वेन प्रकाशते इति भः शीश्चासौ भश्चेति शीभस्तं सर्वालयाधिष्ठानचिन्मात्रस्वरूपमित्यर्थः ।

जिसमें इस ब्रह्मांड के पारित होने के अवशेष प्राप्त होते हैं और जो स्वयं प्रकाश से प्रकाशित होते हैं, वे प्रतीकात्मक रूप हैं। या जो स्वयं भक्तों को कृतज्ञता से ग्रहण करते हैं।


सुराधा : शोभना मुख्या राधा यासु ताः सुराधा : 

इसमें भी राधा जी को मुख्य गोपी माना गया है।


(अथर्ववेद की राधिका तापनि उपनिषद)

येयं राधा यश्च कृष्णो रसब्दिः देहाश्चैकः क्रीडानामर्थं द्विधाभूत (12वां मन्त्र )

श्रीमती राधारानी और कृष्ण, दोनों दिव्य मधुरता के एक सागर हैं, दिव्य नाटक करने के लिए अलग हो गए।

एवम्

राधोपनिषद भी राधा जी को समर्पित एक उपनिषद है जो अथर्ववेदीय उपनिषद के अंतर्गत है।

साथ ही

सामरहस्योपनिषद मे भी राधा शब्द का प्रयोग हुआ है

अनादिरयं पुरुष एक एवास्ति । तदेव रूपं द्विधा विधाय समाराधनतत्परोऽभूत् । तस्मात् तां ""राधां"" रसिकानन्दां वेदविदो वदन्ति।


अब कुछ प्रश्नों ( अक्षेपों) का उत्तर:—


1.) कौन है श्री कृष्ण की असली भार्या

रुक्मिणी जी या राधा जी?

 शिवकुण्डे सुनन्दा तु नन्दिनी देविका तटे ।

 रुक्मिणी द्वारवत्यान्तु राधा वृन्दावने वने ॥ 

(मत्स्य पुराण अध्याय 13 श्लोक 38 )


मैं ( माता आदिशक्ति)शिवकुण्डतीर्थमें शिवानन्दा, देविका (पंजाबकी देवनदी) के तटपर नन्दिनी, 

""द्वारकापुरीमें रुक्मिणी"" और ""वृन्दावनमें राधा"" हूँ॥


:—वे दोनो माता जगदम्बा आदिशक्ति ही है वे एक परब्रह्मस्वरूपिणि अवतरित हुई है इन रूपों में।


2.) आखिर भागवत पुराण में उनका वर्णन क्यों नही आता?

श्री शुकदेव जी द्वारा परीक्षित जी को भागवत महापुराण की कथा मात्र सात (7) दिनों में सुनाई गई थी यह बात तो सर्वविदित है ही।

किन्तु ये जानने की आवश्कता है की वे किस स्तर के महान भक्त थे।

राधा जी में उनकी इतनी दृढ़ प्रेमाभक्ति थी की उनके चरण कमलों का ध्यान करते जी वे छ: माह की अटूट समाधि में चले जाते थे।

किंतु श्राप के प्रभाव से परीक्षित जी के मृत्यु 7 दिन पश्चात होनी थी और इतना समय नहीं था इसलिय शुकदेव जी ने राधा जी के अन्य नामों का प्रयोग किया सारी कथा मे।


इसलिए हमे परोक्ष रूप से उनका वर्णन प्राप्त होता है भागवत में।


१.)अनयाराधितो नूनं भगवान् हरिरीश्वरः ।

यन्नो विहाय गोविन्दः प्रीतो यामनयद्रहः ॥ 

(भागवतम् 10.30.028 )


यहां “राध ससिद्धौ स्तुतौ” धातु का प्रयोग इस प्रकार हुआ है

अनया+राधित, अनया+ आराधितः


२.)निंबार्काचार्य शुकदेव जी ने अपने "सिद्धान्तप्रदीप" में लिखा

राधित — (राधा सह जाता) अर्थात् राधाजी से जुड़ा हुआ।

इसलिए यह श्लोक श्रीमद्भागवतम में राधा के उल्लेख की पुष्टि करता है।


३.)जब श्रीशुकदेव महाराज ने श्रीमद्भागवत के सृष्टिप्रसङ्ग बोलने को आरम्भ किया, तब उन्होनें इस श्लोक से मङ्गलाचरण किया (२।४।१४) - 

नमो नमस्तेऽस्त्वृषभाय सात्वतां

विदूरकाष्ठाय मुहु: कुयोगिनाम्।

निरस्तसाम्यातिशयेन राधसा

स्वधामनि ब्रह्मणि रंस्यते नम:॥ 


यहाँ 'राधस्' का अनुवाद प्रायशः 'ऐश्वर्य' या 'शक्ति' किया जाता है। राधस् की व्युत्पत्ति राध् धातु में, सर्वधातुभ्योऽसुन् (४.१८८) यह उणादिसूत्र से 'असुन्' प्रत्यय लगाने से हुई है।


राध् संसिद्धौ वृद्धौ च - राध् धातु संसिद्धि या वृद्धि के अर्थ में होता है। उसी तरह उसी धातु से राधा शब्द का भी समान अर्थ लेना चाहिए।


श्रीराधा तो श्रीकृष्ण भगवान् की शक्ति ही तो है। श्रीभगवान् के कार्य की संसिद्धि उन्हीं के अधीन शक्ति से सम्भव होती है।


 3.) अच्छा फिर महाभारत में राधा जी का वर्णन क्यों नही?

रामायण एवं महाभारत इतिहास के अंतर्गत आते हैं।

 महाभारत में विस्तृत रूप से पांडवो एवं कौरवो के जीवन का निरूपण किया गया है एवं उनके बीच महाभारत युद्ध का वर्णन किया गया है, धर्म नीति का उपदेश दिया गया है इसलिए वहां इतना विस्तार से राधा जी का निरूपण नही आता।

और वैसे भी पुराणों में तो इतने विस्तार से राधा जी की महिमा का गान किया ही गया है ।( जो हम पूर्वोक्त ही प्रदर्शित कर दिए हैं।)


4.) क्या राधा जी जयदेव गोस्वामी जी की कल्पना थी ?

( जैसा भ्रम फैलाया जाता है)

यह मात्र भ्रम ही है जो फैलाया जाता है समाज में।

श्री राधा जी का वर्णन समस्त पुराणादि एवं पौराणिक महानुभवों के ग्रंथो में भी है( जो हम पहले ही दिखा दिया है)।

इसी प्रकार राधाजी की महिमा को जीव गोस्वामी ने अपने वैष्णवतोषिणी टीका में दोहराया है।


👉भक्तजनो यदि अब भी इतने विस्तृत प्रमाणों के प्राप्त होने के बाद भी किसी भ्रमित करने वालें की बातों में आओगे तो स्वयं का ही पतन करोगे ।


🌸परम मङ्गलमय परात्पराखिलेशवराखिल ब्रह्माण्ड नायक परब्रह्म परमात्मा भगवान् श्री कृष्ण भी जिन आदिशक्ति परमब्रह्मस्वरूपिणी श्री राधा जी के चरण कमलों की सेवा के लिए लालायित रहते है उन रासेश्वरी गोपेश्वरी कृष्णप्राणेश्वरी श्री राधा जी को हम प्रणाम करते है।🌸


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राधे राधे (Radhe radhe)





Comments

  1. Sab sahi tha lekin Ved wala indirectly sahi tha

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  2. Jay Jay ...Sri Radhey Radhey Krushna...🪷🪷💞🙏🏻

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