A Tribute to all the " parampara prapt"gurus on this Guru Purnima . सभी पूज्य परंपराप्राप्त गुरुजनों को समर्पित पोस्ट।





 नमस्कारम्

सर्वेभ्यः अद्य गुरुपुर्णिमापर्वणः हार्दिक्यः शुभकामनाः।


-सभी को गुरु पूर्णिमा ( व्यास पूर्णिमा) की हार्दिक शुभेच्छा 

-wishing good wishes for everone on guru purnima


कालेन मीलितधियामवमृश्य नृणां स्तोकायुषां स्वनिगमो बत दूरपारः । 

आविर्हितस्त्वनुयुगं स हि सत्यवत्यां वेदद्रुमं विटपशो विभजिष्यति स्म ।

(भागवतम् 2.7.36)

समयके फेरसे लोगोंकी समझ कम हो जाती है, आयु भी कम होने लगती है। उस समय जब भगवान् देखते हैं कि अब ये लोग मेरे तत्त्वको बतलानेवाली वेदवाणीको समझनेमें असमर्थ होते जा रहे हैं, तब प्रत्येक कल्पमें सत्यवतीके गर्भसे व्यासके रूपमें प्रकट होकर वे वेदरूपी वृक्षका विभिन्न शाखाओंके रूपमें विभाजन कर देते हैं।


व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे।

नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः ।।

(विष्णुसहस्त्रनामस्तोत्रम्)

भगवान् विष्णु के साक्षात् अवतार श्री कृष्णद्वैपायन व्यास जी 

🌸जिन्होंने मानव कल्याण के लिए वेद को चार भागो में विभक्त किया,

🌸जिन्होने 18 पुराण, 18 उपपुराण और 18 औपपुराणों की रचना की,

🌸जिन्होने "शतसाहस्री" (1 लाख से अधिक श्लोकों वाली) महाभारत की रचना की,

🌸जिन्होने ब्रह्म सुत्रों की रचना की,,,

ऐसे व्यास देव जी को हम प्रणाम करते हैं।


अब गुरु अर्थ पर विचार करते हैं.....


गुकारश्चान्धकारो हि रुकारस्तेज उच्यते |

अज्ञानग्रासकं ब्रह्म गुरुरेव न संशयः ||

एवं

गुकारश्चान्धकारस्तु रुकारस्तन्निरोधकृत् |

अन्धकारविनाशित्वात् गुरुरित्यभिधीयते ||


‘गु’ शब्द का अर्थ है अंधकार (अज्ञान) और ‘रु’ शब्द का अर्थ है प्रकाश (ज्ञान) | अज्ञान को नष्ट करनेवाल जो ब्रह्मरूप प्रकाश है वह गुरु है | इसमें कोई संशय नहीं है |

गुरु महिमा का निरूपण

एवम्

गुरु कौन हो सकते हैं?????


धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः।

तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते।।


धर्म को जाननेवाले, धर्म मुताबिक आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं। 


निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते। 

गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु र्निगद्यते॥


जो दूसरों को भ्रमित होने से रोकते हैं, स्वयं पापरहित जीवन रास्ते से चलते हैं, हित और कुशल-क्षेम,की अभिलाषा रखनेवाले को तत्त्वबोध करते हैं,उन्हें गुरु कहते हैं।


विनयफलं शुश्रूषा गुरुशुश्रूषाफलं श्रुतं ज्ञानम्।

ज्ञानस्य फलं विरतिः विरतिफलं चाश्रवनिरोधः।।


विनय का फल सेवा है, गुरुसेवा का फल ज्ञान है, ज्ञान का फल विरक्ति (स्थायित्व) है,

और विरक्ति का फल आश्रवनिरोध (बंधनमुक्ति तथा मोक्ष) है।


अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।


उस महान गुरु को अभिवादन, जिसने उस अवस्था का साक्षात्कार करना संभव किया जो पूरे ब्रम्हांड में व्याप्त है, सभी जीवित और मृत्य (मृत) में।



परम्परा द्वारा शिक्षित एवं दीक्षित, आचार्यपद पर प्रतिष्ठित गुरु ही वास्तव मे गुरु रूप मे स्वीकार किये जा सकते है।


अधिक क्या कहें,

गुरु की महिमा का निरूपण करना कहां तक संभव है

गुरु की महिमा अचिंतनीय अवर्णीय है।


देवो रुष्टे गुरुस्त्राता गुरो रुष्टे न कश्चनः । 

गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता न संशयः ।।

- यदि देव रूष्ट हो जाए तो गुरु रक्षा करलेते है किंतु यदि गुरु जी रूष्ट हो जाए ( तो रक्षा करने में कौन समर्थवान है )अर्थात् कोई रक्षा करने वाला नहीं होता ।

गुरु ही रक्षक है, गुरु ही रक्षक है, गुरु ही रक्षक है, इसमें कोई संदेह नहीं।


🌺जिस प्रकार समुद्र से एक लोटा जल निकालकर ये नहीं कहा जा सकता है, हमने समुद्र का पार पा लिया है, उसी प्रकार गुरु की असीम महिमा को किञ्चित् मात्र ही व्यक्त कर पाना ही सम्भव है।🌺



गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।


गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है। गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है, उन सद्गुरु को प्रणाम।


अरण्ये न वा स्वस्य गेहे न कार्ये,

न देहे मनो वर्तते मे त्वनर्घ्ये।

मनश्चैन लग्नम गुरोरंघ्रि पद्मे,

ततः किं, ततः किं, ततः किं, ततः किं।।


संसार के सभी भोग, सभी सिद्धियां, सभी सुख प्राप्त भी करलें,

किन्तु यदि गुरु के चरणकमलों में समर्पण एवं प्रीति नहीं

तो निश्चित रूप से सभी उपलब्धियों का कोई अर्थ नहीं कोई प्रयोजन नहीं है।


श्री गुरुचरणकमलेभ्यो नमः

इति शम्



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