न तस्य॑ प्रतिमा अ॑स्ति यस्य॒ नाम॑ म॒हद्यश: । Refuting claims against "Idol worship". "मूर्ति पूजा " पर लगे अक्षेपों का अन्त। #murtipuja #murtipujainvedas
We'll prove in this post that murti puja is accepted in vedas and shastras.
हम इस पोस्ट में प्रमाणित करेंगे कि वेदादि शास्त्रसम्मत है मूर्ति पूजा।
"न तस्य॑ प्रतिमा - अ॑स्ति यस्य॒ नाम॑ महद्यश॑ : । हिरण्यगर्भ इत्येष : ॥ "
इस मंत्र के द्वारा कुछ व्यक्ति यह सिद्ध करना चाहते हैं कि ईश्वर की कोई प्रतिमा नहीं है ईश्वर निराकार है वह साकार नहीं हो सकता एवम् मूर्ति पूजा अवैदिक है।
किन्तु वे नहीं जानते कि बार-बार एक ही प्रकार से बात घुमाकर कहना अथवा आधी बात बताकर भ्रमित करना, इतना भी सरल नहीं है।
इसलिए अब हम इसका समाधान कर रहे हैं: -
अथ समाधान:
अस्तु
तो यह मंत्र आता है
यजुर्वेद ३२.३ (32.3)
पुरुष सूक्तम्
सर्वप्रथम इस मंत्र के अर्थ पर बात कर लेते हैं, जो वे कह रहे हैं कि उस परमात्मा की कोई प्रतिमा नहीं है। इसका सामान्य रूप से अर्थ यह किया जा रहा है किंतु वास्तविक यह है कि उस परमात्मा की कोई तुलना नहीं है (यहां प्रतिमा शब्द आया है
कहां से?
प्रतिम् शब्द से जिसका अर्थ है "तुलना"।
इसलिए यहां अर्थ तुलनात्मक है एवं इसका प्रयोग तुलना के अर्थ में किया गया हैं)
अब प्रतिमा शब्द पर विचार करतें है और हम प्रमाणित करेंगे विभिन्न कोशों से की इसका अर्थ तूलना ही है:—
अस्तु
मोनियर-विलियम्स-कोशे - (वेद)
एक छवि , समानता सादृश्य(resemblance)
(frequently at the end of comps. in the sense of
‘like, similar, resembling, equal to,’ e.
अमरकोश —प्र॰,
सनातन (like an immortal)
वाचस्पत्ये - प्रतिमा (स्त्री॰) प्रति + मा —भावे अङ्।
१ ~ सादृश्ये। करणे अङ्। …… [हेमचन्द्रकोशोद्धृत]
४ ~ सदृशार्थे त्रि॰ हेमचन्द्रः।
आप्ते-कोशे - 2. सादृश्य Resemblance, similitude; often in comp. in the sense of ‘like, similar, or equal to’;
शब्दसागरे -
1. A resemblance, a figure, an image, a picture.
2. An idol.
3. The part of an elephant's head between the tusks.
4. Similarity, Similitude.
5. Measure, extent.
E. प्रति against, मा to measure, अङ् and टाप् aff.
शब्दकल्पद्रुमे - प्रतिमा। …… तत्पर्यायः प्रतिमानम्॥
प्रतिमानम्। …… सादृश्यम्।
👉वेद ईश्वर की वाणी है स्वयं ईश्वर ही वेदस्वरूप है इसलिए वेदों का मनोकल्पित अर्थ करना एवं स्वबुद्धि से विचार करना बुद्धिमता कदापि नहीं है।
👉इसलिए वेदों के अर्थ के लिए जो छ: वेदाङ्ग पढ़े जातें हैं एवं उनके द्वारा प्रयुक्त अर्थ जो की आचार्य परम्परा से प्राप्त है वही किसी बुद्धिमान के लिए मान्य है।
तो पौराणिक आचार्य क्या लिखते है?
☀️धर्म सम्राट् स्वामी करपात्री जी महाराज लिखते है:
उस महानारायण पुरुष का कोई उपमान नहीं है, अर्थात् उसको बराबरी करने वाला कोई नहीं है । उसका नाम महान् यश को देने वाला है, इसम वेद ही प्रमाण है। जैसे कि ' हिरण्यगर्भः' (२५।१०), 'मा मा हि ् सीत्' ( २१।१०२), परमान्न जात' ( ८।३६ ) इत्यादि श्रुतियाँ इसके महान् यश को वर्णित करती है ॥ ३ ॥
स्वामि राघवाचार्य जी द्वारा भी इसकी पुष्टि की गई है की यहां अर्थ तुलनात्मक है।
तो अब इस सूक्त के द्वारा (वेदों से ) ही यह बातचीत की जाएगी कि यहां पर अर्थ प्रतिमा का मूर्ति से नहीं बल्कि तुलना में है।
अस्तु:-
स॒हस्र॑शीर्षा पुरु॑ष ......स्पृ॒त्वाऽत्य॑तिष्ठद् दशाङ्गुलम् ।।
प्रथम तो यह की ये मंत्र जिस सूक्त मे लिखा गया है वह भगवान् ( परम् पुरुषः) के विराट स्वरूप का वर्णन करता है।
पहले मंत्र में ही कहा गया है कि उस परमात्मा के सहस्त्र शीर्ष है (सिर),परमात्मा के सहस्त्र चक्षु है एवं सहस्त्र पाद है।
तो यहां पर इससे सिद्ध होता है कि वह परमात्मा जब तक निराकार से साकार नहीं होता निर्गुण से सगुण नहीं होता साकार रूप धारण नहीं करता तब तक किस प्रकार विश्व की अभिव्यक्ति सम्भव है।
पुरु॑ष ए॒वेद सर्वं ..... यदन्ने॑नातिरोह॑ति ।।
अब इसी सूक्त का दूसरा मंत्र कहता है कि जो सृष्टि बन चुकी है कि यह संपूर्ण सृष्टि तीनों कालों में वह विराट पुरुष ही है जिसके अन्यान्य प्रमाण बाकी ग्रंथों में भी उपलब्ध है ।
यथा पादो'ऽस्य॒ ..... दि॒वि ।।
इसमें उस परम पुरुष के पादों ( चरणों) के बारे में दर्शाया गया है।
अब पांचवा प्रमाण:
स एव जात ......इत्येष : ।।
इसमे स्पष्ट रुप से कहा गया है
(सर्वतोमुख )
अर्थात् उस परमात्मा के सब ओर मुख है
अब छठा प्रमाण भी दिया जा रहा है
श्रीश्च॑ ते लक्ष्मीश्च॒ पत्न्या॑ - ..... रूपम॒श्विनौ व्यात्त॑म् ।
पूर्णतया स्पष्ट रूप से इस मंत्र में श्री लक्ष्मी जी का नाम लिया गया है, श्री भी लगाया गया है एवं लक्ष्मी भी कहा गया है जो उन्हीं का द्योतक है।
श्री लक्ष्मी जी तो भगवान् नारायण की ही पत्नी है उनके वाम भाग में सुशोभित है तो इस में प्रत्यक्ष रुप से श्रीमन्नारायण की बात की गई है( वे ही परम पुरुष सर्वेश्वर है)
यह भी सिद्ध हुआ।
अब एक और बात पत्नी तो किसी साकार की ही हो सकती हैं।
---- वह जो कहा गया है कि परमेश्वर की कोई नाड़ी नहीं है कोई रक्त नहीं है कोई मांस नहीं है कुछ भी नहीं है वह संकेत करतें हैं उनका निराकार निर्गुण स्वरूप है और वही जब साकार सगुण रूप धारण करते हैं जिनको वे ही स्वयं श्रीमद्भगवद्गीता में एवम् अन्यान्य ग्रन्थो मे व्यक्त कर चुके हैं तो सभी मंत्रों के प्रदर्शन से जिस पुरुष सूक्त मे प्रतिमा शब्द का अर्थ है जिसके द्वारा मूर्ति पूजा का विरोध किया जाता है उसकी सत्यता बात दी गयी है।
श्रुति से ही कुछ और प्रमाण भी देख लेते हैं पुनः —
नारायण प॑रं ब्रह्म।।४।।
—नारायण ही परम ब्रह्म है।
नारायण परो ध्याता .......
...दृश्यते॑' श्रूयतेऽपि॑ वा ।।५।।
—नारायण ही परम ध्याता है ( ध्यान करने योग्य है)
अन्त॑र्बहिश्च॑ तत्सर्वं व्याप्य ।।६।।
—सम्पूर्ण संसार बाहर और भीतर से नारायण से ही व्याप्त है
(नारायण सूक्तम् )
कृष्ण यजुर्वेद, तैत्तिरीय अरण्यक - 4, 10वा प्रश्न ( प्रपाठक), 13वा अनुवाक
Note: हमने प्रमाण के साथ सभी बातें प्रस्तुत की हैं किंतु यदि फिर भी कोई कुतर्क करता है तो उसकी बुद्धि को बलिहारी है।
🌸इस प्रकार इस पोस्ट में हमने इस मंत्र का वास्तविक अर्थ( प्रमाण सहित) बताया है एवं यह भी सिद्ध किया है कि ईश्वर साकार सगुण भी है।🌸
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