Is the word "Hindu" given by foreigners? Is the word "Hindu" mentioned in scriptures? क्या "हिन्दू" शब्द विदेशियों की देन है????? क्या "हिन्दू" शब्द सनातन ग्रंथों में आता है और कहां पर?????
हिन्दू शब्द की प्राचीनता तथा शास्त्रसम्मतता प्रश्न उठता है कि आर्य, वैदिक और सनातनी शब्द शास्त्रसम्मत और परम्पराप्राप्त होनेपर भी क्या हिन्दू या हिन्दू शब्द भी शास्त्रसम्मत और परम्पराप्राप्त है? अधिकांश बुद्धिजीवियोंकी धारणा तो यही है कि हिन्दू नाम मुगलों या पारसीयों की देन है, जो कि चोर आदि हीनताका वाचक है।
किन्तु वास्तविकता यह है की सैकड़ों वर्ष पूर्व से ही हिन्दू और हिन्दू शब्दका प्रयोग सौम्य, सुन्दर, सुशोभित, शीलनिधि, दमशील और दुष्टदलन में दक्ष अर्थोंमें प्रयुक्त और प्रचलित था। सिकन्दरने भारतमें आकर अपने मन्त्रीसे हिन्दूकुश (हिन्दूकूट) पर्वतके दर्शनकी इच्छा व्यक्त की थी। पारसियोंके धर्मग्रन्थ शातीरमें हिन्दूशब्दका उल्लेख है। अवेस्तामें हजारों वैदिक शब्द पाये जाते हैं। सिकन्दरसे भी सैकड़ों वर्ष पूर्वका यह ग्रन्थ है। उसमें हिन्दू शब्दका प्रयोग है। बलख नगरका नाम पूर्वकालमें हिन्दवार था।
सर्वप्रथम पुराणादि से प्रारंभ करते है
तत्पश्चात् वेदों से भी प्रमाण दिया जायेगा इसलिए अन्त तक अवश्य पढ़िएगा।
अस्तु
कालिकापुराण और शार्ङ्गधरपद्धतिके अनुसार वेदमार्गका अनुसरण
करनेवाले हिन्दु मान्य हैं -
बलिना कलिनाऽऽच्छन्ने धर्मे कवलितौ कलौ । यवनैरवनिः क्रान्ता हिन्दवो विन्ध्यमाविशन्।। कालेन बलिना नूनमधर्मकलिते कलौ ।
यवनैर्घोरमाक्रान्ता हिन्दवो विन्ध्यमाविशन्।।
(कालिकापुराण)
यवनैरवनिः क्रान्ता हिन्दवो विन्ध्यमाविशन्। बलिना वेदमार्गोऽयं कलिना कवलीकृतः । ॥
(शार्ङ्गधरपद्धति)
"कालबलीके कुचक्रके कारण कलिमें अधर्मसे वैदिक धर्मके आच्छन्नहो जानेपर तथा घोर आक्रान्ता यवनोंसे भारतके विविध भूभाग उत्पीडित हो जानेपर हिन्दू विन्ध्यपर्वत चले गये ।। "
हिमालयका प्रथम अक्षर 'ह्' है। इन्दुसरोवर (कुमारी अन्तरीप ) के प्रारम्भके दो अक्षर 'इन्दु' है। ह् + इन्दु = हिन्दु होता है। बृहस्पति आगमके अनुसार हिमालयसे इन्दुसरोवरतकका देवनिर्मित भूभाग हिन्दुस्थान कहा जाता है। इसमें परम्परासे निवास करनेवाले और उनके वंशधर हिन्दु कहे जाते हैं
हिमालयं समारभ्य यावदिन्दुसरोवरम् । तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते ।।
(बृहस्पति आगम)
" हि ' शब्दोपलक्षित हिमालय समझना चाहिये। 'न्दु' शब्दोपलक्षित कुमारी अन्तरीप इन्दुसरोवर कन्याकुमारी समझना चाहिये। हिमालयसे कुमारी अन्तरीप पर्यन्त देवविनिर्मित भूभागको हिन्दुस्थान कहते हैं ।।"
आसमुद्राच्च यत् पूर्वादासमुद्राच्च पश्चिमात् । हिमाद्रिविन्ध्ययोर्मध्यमार्यावर्त प्रचक्षते ।।
(महाभारत- आश्वमेधिकपर्व ९२. दाक्षि.)
"पूर्वमें समुद्रसे लेकर पश्चिममें समुद्रपर्यन्त तथा उत्तरमें हिमालयसे लेकर दक्षिणमें विन्ध्यपर्वतपर्यन्त आर्यावर्त कहा जाता है।। "
हिंसया दूयते यश्च सदाचारतत्परः ।
वेदगोप्रतिमासेवी स हिन्दुमुखशब्दभाक् ।।
( भविष्यपुराण- प्रतिसर्गपर्व प्रथमखण्ड ५.३६ )
'सप्तसिन्धुस्तथैव च । सप्तहिन्दुर्यावनी च ' हिन्दु शब्दका प्रयोग किया गया है। पश्चिमी देशोंमें एकमात्र इसी मार्गसे जानेके कारण भारत हिन्द कहा जाने लगा और भारतीय हिन्दु या हिन्दू कहलाने लगे। स्वतन्त्रताके पूर्वतक पारस, ईरान, तुर्की, ईराक, अफगानिस्तान और अमरीकादिमें भारतको 'हिन्द' और भारतीयोंको 'हिन्दू' कहा जाता था। अद्भुतकोषके अनुसार 'हिन्दु' और 'हिन्दू' दोनों शब्द पुल्लिङ्ग हैं। दुष्टोंका दमन करनेवाले 'हिन्दु' और 'हिन्दू' कहे जाते हैं। 'सुन्दररूपसे सुशोभित और दैत्योंके दमनमें दक्ष' इन दोनों अर्थोंमें भी इन शब्दोंका प्रयोग होता है।
"हिन्दु - हिन्दूश्च पुंसि दुष्टानां च विघर्षणे। रूपशालिनि दैत्यारौ....।।"
हेमन्तकविकोषके अनुसार "हिन्दुर्हि नारायणादिदेवताभक्तः" "हिन्दु उसे कहा जाता है, जो कि परम्परासे नारायणादि देवताका भक्त हो।।"
मेरुतन्त्र प्रकाश २३ के अनुसार "हीनं च दूषयत्येव हिन्दुरित्युच्यते प्रिये । " - "हे प्रिये! जो हीनाचरणको निन्द्य समझकर उसका परित्याग करे, वह हिन्दु कहलाता है। "
शब्दकल्पद्रुमकोषके अनुसार “हीनं दूषयति इति हिन्दू", “पृषोदरादित्वात् साधुजातिविशेष:"-"हीनताविनिर्मुक्त साधुजाति विशेष हिन्दु है।"
पारिजातहरणनाटकके अनुसार
"हिनस्ति तपसा पापान् दैहिकान् दुष्टमानसान् ।
हेतिभिः शत्रुवर्गं च स हिन्दुरभिधीयते । । "
"जो अपनी तपस्यासे दैहिक पापों तथा चित्तको दूषित करनेवाले दोषों का नाश करता है तथा जो शस्त्रोंसे शत्रु समुदायका भी नाश करता है, वह हिन्दू कहलाता है।।"
रामकोषके अनुसार -
"हिन्दुर्दुष्टो न भवति नानार्यो न विदूषकः ।
सद्धर्मपालको विद्वान् श्रौतधर्मपरायणः ।।"
"हिन्दू दुर्जन नहीं होता, न अनार्य होता है, न निन्दक ही होता है। जो सद्धर्मपालक, विद्वान् और श्रौतधर्म परायण है, वह हिन्दू है ।। "
माधवदिग्विजयके अनुसार सनातनी, आर्यसमाजी, जैन, बौद्ध और सिक्खादिमें अनुगत लक्षणके अनुसार ओङ्कारको मूलमन्त्र माननेवाला, • पुनर्जन्ममें दृढ आस्था रखनेवाला, गोभक्त और भारतीय मूलके सत्पुरुषद्वारा प्रवर्तित पथका अनुगमन करनेवाला तथा हिंसाको निन्द्य माननेवाला हिन्दू कहने योग्य है।
ओङ्कारमूलमन्त्राढ्यः पुनर्जन्मदृढाशयः ।
गोभक्तो भारतगुरुर्हिन्दुहिंसनदूषकः । ॥
वीरसावरकरके शब्दों में सिन्धुनदीसे लेकर समुद्रपर्यन्त भारतभूमि जिसकी पैतृक सम्पत्ति और पवित्र भूमि हो, वही हिन्दु है
आसिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका । पितृभूः पुण्यभूश्चैव सवै हिन्दुरिति स्मृतः ।।
श्रीलोकमान्यतिलकके शब्दोंमें हिन्दुधर्मका लक्षण इस प्रकार है
- उपास्यानामनियमो हिन्दुधर्मस्य लक्षणम् ।। "वेदोंमें प्रामाण्यबुद्धि, नियमोंमें देश, काल, व्यक्तिभेदसे अनेकता, सर्वेश्वर तथा उनके उत्पत्ति, स्थिति, संहृति, तिरोधान और अनुग्रह संज्ञक पञ्चकृत्यनिर्वाहक हिरण्यगर्भात्मक सूर्य, विष्णु, शिव, शक्ति तथा गणपति एवम् इनके शास्त्रसम्मत विविध अवतारको उपास्यरूपसे प्रस्तुत करना हिन्दुधर्मका लक्षण है।।"
'श्रुत्यादि प्रोक्तानि सर्वाणि दूषणानि हिनस्तीति हिन्दुः'
- "श्रुति स्मृति पुराण- इतिहास में निरूपित सर्व दूषणोंका जो हनन करे, वह हिन्दु है।"
प्रामाण्यबुद्धिर्वेदेषुनियमानामनेकता ।
उक्त रीतिसे -
श्रीविनोबाभावेके अनुसार यो वर्णाश्रमनिष्ठावान् गोभक्तः श्रुतिमातृकः ।
मूर्तिं च नावजानाति सर्वधर्मसमादरः ।।
उत्प्रेक्षते पुनर्जन्म तस्मान्मोक्षणमीहते ।
भूतानुकूल्यं भजते स वै हिन्दुरिति स्मृतः ।।
हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरितः ।। "जो वर्णों और आश्रमोंकी व्यवस्थामें आस्था रखनेवाला, गोभक्त, श्रुतियोंका समादर करनेवाला, सच्चिदानन्दस्वरूप सर्वेश्वरके विविध अवतारों में आस्थान्वित मूर्तिपूजक है, श्रौतस्मार्त तथा इनके अविरुद्ध सर्वधर्मोके प्रति जिसके हृदयमें समादर है, जो पुनर्जन्मको मानता और उससे मुक्त होनेका प्रयत्न करता है और जो सदा सब प्राणियोंके अनूकूल वर्ताव करता है, वही हिन्दु माना गया है। हिंसासे उसका चित्त दुःखी होता है, अतः उसे हिन्दु कहा गया है ।।" सनातनशैलीमें हिन्दुकी परिभाषा इस प्रकार है
'श्रुतिस्मृत्यादिशास्त्रेषु प्रामाण्यबुद्धिमवलम्ब्य
श्रुत्यादिप्रोक्ते धर्मे विश्वासं निष्ठां च यः करोति स एव वास्तव हिन्दुपदवाच्यः" (धर्मसम्राट् स्वामी - श्रीहरिहरानन्दसरस्वती 'करपात्रीजी') 'श्रुति स्मृत्यादि शास्त्रोंमें प्रामाण्यबुद्धिका आश्रय लेकर उनमें कहे हुए धर्ममें जो विश्वास और निष्ठा करता है, वही वास्तवमें हिन्दु कहने योग्य है ।। "
भविष्यपुराण में हिन्दुस्थानको सिन्धुस्थान आर्योंका राष्ट्र कहा गया है:-
"सिन्धुस्थानमिति ज्ञेयं राष्ट्रमार्यस्य चोत्तमम्।"
अब वेदों से प्रमाण:—
हिन्दु शब्द की निष्पत्ति ऋग्वेद के अनुसार गाय के हिङ्कार से हुई ।
हिङ्कार करने वाली गाय का भक्त अर्थात् गौ-भक्त जो है वह हिन्दु है,
ऋग्वेद के अनुसार गाय के हिङ्कार से हिन्दु शब्द बना है।
हिन्दु शब्द का मूल स्रोत् ऋग्वेद मे गौ का हिङ्कार कहा गया है-
गोवर्णनपरक
हिं-कृण्वन्ती वसुपत्नी वसूनां वत्समिच्छन्ती मनसाभ्यागात् ।
दुहामश्विभ्यां पयो अघ्न्येयं सा वर्धतां महते सौभगाय॥”
(ऋक् १.१६४.२७,अथर्व. ९.१०.५)
इस मन्त्र में पूर्वार्द्ध का आदिम “ हिं-कृण्वन्ती” में प्रयुक्त “हिं”
और उत्तरार्द्ध “दुहामश्विभ्यां पय:”का आदिम “दु” अक्षर मिलकर हिन्दु होता है। जिसका अर्थ गोभक्त होता है।
श या स को कहने की विधा शास्त्रसम्मत है।
'श्रीश्च' ( यजुर्वेद ३१.२२), 'हीश्च' (कृष्णयजुर्वेद तै. ३१.१ ), 'शिरासन्धिसन्निपाते रोमावर्तोऽधिपति:' ( सुश्रुत ६.७१), 'हिरालोहितवाससः' (अथर्व ५.१७.१), 'सरस्वति (ऋक १०.७५.७), हरस्वती' (ऋक् २.२३. ६), 'अमूर्या यन्ति योषितो हिरा : / शिरा : लोहितवाससः'
आदि उदाहरणों के अनुशीलनसे यह तथ्य सिद्ध है।
“सरितो हरितो भवन्ति, सरस्वत्यो हरस्वत्य: "
( निघण्टु १. १३)
के अनुशीलनसे यह तथ्य सिद्ध है कि 'सरित: ' के सदृश ही 'हरित: ' भी नदीका नाम मान्य है ।
यथा 'सरिते' (ऋक् - परिशिष्ट), 'हरितः' (अथर्व १३.२.२५), 'हरितो नरंह्या:' (अथर्ववेद २०.३०.४),
'यं वहन्ति हरितः सप्त'
(अथर्ववेद १३.२.२५)
के अनुसार 'हरित: ' और 'सरित: ' में अर्थभेद नहीं है । उत्तरीतिसे सिन्धुके तुल्य हिन्दु भारतका प्राचीन नाम सिद्ध होता है ।
वास्तविकता जानें:—
"ग्यासलुगात" आदिमें हिन्दुका अर्थ गुलाम, चोर, फिर किया गया है। शरीरका अर्थ उपद्रवी, देवका अर्थ राक्षस, रामका अर्थ गुलाम, आर्यका अर्थ अश्व गर्दभादि शाला तथा अश्वादिका हीनाङ्ग किया गया है और संस्कृतभाषाको जिन्नभाषा कहा गया है। जबकि अरबी कोषमें हिन्दुका अर्थ खालिस अर्थात् शुद्ध होता है, न कि चोर आदि मलिन निकृष्ट ।
यहूदियोंके मतमें हिन्दूका अर्थ शक्तिशाली वीर पुरुष होता है।
विशेष संदेश:—
साधर्म्य वैधर्म्य और भावाभावके विवेकके अमोघ प्रभावसे दुःखविमुक्त होनेकी नीति (न्याय)- सम्मत वैशेषिक विधा सनातन हिन्दुधर्म है ।
प्रकृति तथा प्राकृत दृश्यप्रपञ्चसे अतीत पुरुषके अधिगमके अविरुद्ध और अनुकूल जीवनकी स्वस्थविधा साङ्ख्यसम्मत सनातन हिन्दुधर्म है ।
क्लेशप्रद और क्लेशसंज्ञक अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेशसे, शुभाशुभ कर्मोंसे, सुख-दुःखरूप विपाक (फल) से और शुभाशुभ संस्काररूप आशयसे विरक्त मनको क्लेश-कर्म विपाक आशयसे असंस्पृष्ट पुरुषविशेषरूप पुरुषोत्तमकी उपासनाके अमोघ प्रभावसे प्रकृतिसारूप्यविनिर्मुक्त मोक्षोपयुक्त बनानेका सुयोग योगदृष्टिसे सनातन हिन्दुधर्म है ।
तद्वत् देहेन्द्रियप्राणान्तः करणके शोधक यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार तथा धारणा, ध्यान और समाधिरूप अष्टाङ्गयोगके सेवनसे जीवनको काम, क्रोध, लोभकी दासतासे विमुक्त, शुद्ध, सन्तुष्ट, संयत, स्वस्थ, शान्त और विवेकयुक्त बनानेकी स्वस्थविधाका नाम हिन्दुधर्म है।
तद्वत् साकार निराकार, सगुण-निर्गुण और चिज्जडके विवेकसे मण्डित पुरुषसारूप्य सम्पन्न जीवनकी उज्ज्वल संज्ञा हिन्दुधर्म है। दिव्याचरण और यज्ञादिके अनुष्ठानसे अभिलषित सुखकीव्य अभिव्यक्तिकी अनुपम मीमांसाका नाम वैदिक धर्म है । वेदविहित यज्ञादिके अनुष्ठानसे जीवनको दिव्य तथा दुःखसंयोगविहीन बनानेकी स्वस्थविधा मीमांसादृष्टिसे सनातन हिन्दुधर्म है ।
नीति, प्रीति, स्वार्थ और परमार्थके सामञ्जस्यसे सम्पन्न दिव्य जीवनकी स्वस्थ विधा हिन्दुधर्म है सत्सङ्ग, संयम, स्वाध्याय, यज्ञ, तप, व्रत और जपादिके द्वारा लौकिक, भौतिक और प्राकृत मनमें अलौकिकता, अभौतिकता और अप्राकृतताका आधानकर उसे अद्वय प्रत्यगात्मस्वरूप सच्चिदानन्दमें प्रतिष्ठित करनेका चरम सिद्धान्त वेदान्तसम्मत हिन्दुधर्म है।
सत्सङ्ग, संयम, स्वाध्याय, यज्ञ, तप, व्रत और जपादिके द्वारा लौकिक, भौतिक और प्राकृत मनमें अलौकिकता, अभौतिकता और अप्राकृतताका आधानकर उसे अद्वय प्रत्यगात्मस्वरूप सच्चिदानन्दमें प्रतिष्ठित करनेका चरम सिद्धान्त वेदान्तसम्मत हिन्दुधर्म है।
Major source: पूज्यपुरी शङ्कराचार्य महाभाग जी द्वारा विरचित महापवित्र ग्रन्थ "गर्व से कहो हम हिंदु है" ।
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Garv se kaho ham hindu hai
हर हर महादेव
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