Did Mata Shabari feed ort (jhuthe) fruits to Prabhu Shri Ram??? क्या माता शबरी ने प्रभु श्री राम को उच्छिष्ट बेर खिलाए थे??? Was mata Shabri Shudra??? क्या माता शबरी शुद्रा थीं??? #shabri #ramayan
प्रथम प्रश्न
क्या माता शबरी ने प्रभु श्री राम को उच्छिष्ट बेर खिलाए थे???
अब उत्तर
अस्तु
"अद्य मे सफलं तप्तं स्वर्गश्चैव भविष्यति ।
त्वयि देववरे राम पूजिते पुरुषर्षभ ॥"
( वाल्मिकी रामायण ३।७४।१२)
यहाँ शबरी ने राम को देववर देवश्रेष्ठ विष्णु कहा है।
राम, मैं आपके सौम्य चक्षुओं से पूत होकर आपकी कृपा से अक्षय लोकों को जाऊँगी।
"तवाहं चक्षुषा सौम्य पूता सौम्येन मानदग।
मिष्याम्यशयां लोकांस्त्वत्प्रसादादरिन्दम । "
( वाल्मिकी रामायण ३।७४।१३)
इससे भी श्री राम की ईश्वरता स्पष्ट होती है। इतना ही नहीं किन्तु अध्यात्मरामायण, रामचरितमानस आदि की कथाओं का मूल भी स्पष्ट है। वह कहती है कि धर्मज्ञ महाभाग महर्षियों ने जिनकी में परिचर्या करती थी, मुझसे कहा था कि तुम्हारे आश्रम में राम और लक्ष्मण आयेंगे।
तुम उनका सत्कार करके दिव्य लोकों को प्राप्त करोगी। सो मैंने पम्पातीर समुद्भूत विविध वन्य पदार्थ आपके लिये सचित कर रखे हैं (वा० रा० ३।७४।१६-१८ )
👉इससे यह सूचित होता है कि अपने गुरु की आज्ञा के अनुसार राम के आतिथ्य के लिए पुष्य फल, मूल आदि का संग्रह करती कई दिनों से वह प्रतीक्षा कर रही थी और उत्तम उत्तम वृक्षों और लताओं के फलों, मूलों की परीक्षा करके उनका संग्रहण करती थी।
इसी का उपबृंहण पद्मपुराण में हैं। राम ने कबन्ध से सुने हुए उस आश्रम के चमत्कारों को देखना चाहा। उसने सब दिखाया और बताया कि यहाँ मेरे गुरु महर्षि ने मन्त्रपूर्वक अपने नीड ( शरीरपक्षर) को हुत किया था। यहीं वेदी पर वे अपने कम्पयुक्त हाथों से पुष्पोपहार अर्पण करते थे। उनके तप के प्रभाव से अतुलप्रभा वेदी आज भी अपनी दिव्यश्री से दिशाओं को प्रकाशित कर रही है। उपवासश्रम से स्नान 'अभिषेक के लिए जाने में असमर्थ होने से उनके लिए चिन्तन मात्र से सप्त सागर यहाँ आकर उपस्थित हो गये थे। उनके द्वारा स्पृष्ट पुष्प अब तक भी परिम्लान नहीं हुए फिर उसने कहा कि अब मैं आपकी अनुज्ञा से शरीर त्याग कर उन महनियों के पास जाना चाहती है।
राम ने कहा भद्रे, मैं तुम्हारे द्वारा अचित हुआ हूँ यथासुख जाओ। चीर-कृष्णाजिनधारिणी शबरी राम से अनुज्ञात होकर अग्नि में अपने आप को आहूत कर ज्वलत्पादकतुल्य दिव्याभरणधारिणी, दिव्यमाल्यानु लेपना तथा दिव्याम्बरधारिणी होकर उस दिव्यधाम में चली गयी जहाँ महर्षि विहरण करते हैं ।
( वा० रा० ३।७४ | २८-३५ )
प्रत्युद्गम्य प्रणम्याच निवेश्य कुशविष्टरे ।
पादप्रक्षालनं कृत्वा तत्तोयं पापनाशनम् ॥
शिरसा धार्य पीत्वा च वन्यैः पुष्पेरथाचयत् ।
फलानि च सुपक्वानि मूलानि मधुराणि च ॥
स्वयमास्वाद्य माधुर्यं परीचय परिभक्ष्य च ।
पश्चात्रिवेदयामास राघवाभ्यां दृढव्रता ॥
फलान्यास्वाद्य काकुत्स्थस्तस्यै मुक्ति परां ददौ।
(पद्मपुराण)
इन श्लोकों में परीक्ष्य तथा परिभक्ष्य शब्दों के आने से यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि शबरी से जूठे फल भगवान को खिलाये। क्योंकि धर्मचारिणी शबरी ऐसा कदापि कर नहीं सकती। स्प अर्थ यही है कि वृक्षों के फलों को चखकर मीठा पहिचानकर उन्हीं वृक्षों के फल तोड़कर लाती थी न कि जूडे कर रखती थी।
शबरी के माहात्म्य वर्णन में ही उक्त कथा का तात्पर्य है। कई लोगों ने लिखा है कि वे जूठे ही फल थे, जिन्हें शबरी ने राम को दिया था। वस्तुतः उसका अभिप्राय यही है कि वह खट्टे मीठे का परीक्षण करके उसी वृक्ष के या उसी ढंग के फलों का संग्रह करती है। बलरामदास के वृत्तान्त के अनुसार वह अपने पति के साथ राम से मिलती है। उसके अनुसार राम उन फलों को नहीं खाते जिनमें दाँतों के निशान नहीं है। परन्तु इसका भी तात्पर्य शबरी की भक्ति की प्रशंसा में ही है।
नोच्छिष्टं कस्यचिद्दद्यान्नाद्याच्चैव तथान्तरा । न चैवात्यशनं कुर्यान्न चोच्छिष्टः क्वचिद् व्रजेत् ॥
(मनुस्मृति २।५६ )
नोच्छिष्टं कस्यचिद्दद्यान्नाद्याच्चैतत्तथान्तरा।
(भविष्यपुराण, ब्राह्म० ३ | ३९)
उच्छिष्टमगुरोरभोज्यं स्वमुच्छिष्टोपहतं च ॥
( वसिष्ठस्मृति १४ । १७)
उक्त सभी प्रमाणों के अनुसार किसी सामान्य व्यक्ति के लिए भी उच्छिष्ट देना निषिद्ध है तो फिर ब्राह्मण, देवता, राजा या ईश्वर के लिए तो उच्छिष्ट अन्न या फल का प्रदान करना परम निषिद्ध ही है।
🌺अतः प्रमाणविरुद्ध आख्यायिका गुणवाद होकर भक्ति की प्रशंसा मात्र में ही पर्यवसित होती है कमाल की प्रियादासकृत टीका में कहा गया है।🌺
रघुराजसिंह की रसिका बसी में भी उल्लेख है कि मुनियों के निवेदन पर:—
शबरी सकुचि सलिल पग डारी तुरतहि भो निर्मल सरबारी ॥
ये सभी कथाएँ भक्ति के महिमावर्णन में ही तात्पर्य रखती हैं। शास्त्रविरुद्ध कृत्य के समर्थन में उनका तात्पर्य नहीं है, अतएव महान् भक्तों ने स्पष्ट कहा है कि श्रुति, स्मृति, पुराण तथा पाञ्चरात्र विधान के विरुद्ध हरि भक्ति उत्पात का ही मूल है।
"श्रुतिस्मृतिपुराणादिपाञ्चरात्रविधिम् विना।
ऐकान्तिकी हरेर्भक्तिरुत्पातायैव केवलम् ।।"
अब दूसरा प्रश्न की वे ब्राह्मणी थी या शुद्रा???
उत्तर:—
रामकियेन के अनुसार वह एक अप्सरा थी। ईश्वर की सेवा में असावधानी के कारण उसे शाप हुआ था कि वह एक जलते हुए जंगल के पास तब तक निवास करे जब तक राम स्वयं आकर उसे बुझा न दें। वरी के निवेदन पर राम ने आग बुझा दी जिससे वह फिर अप्सरा के रूप में स्वर्ग चली गयी।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार शबरी एक धर्मचारिणी ब्राह्मणी श्रमणी थी।
रामरसिकावली के अनुसार शबरी एक मुनिपत्नी थी। किसी समय मुनि वन से साधना करके लौटे तो उसने उनका चरण धोया
अब प्रमाण
आर्ष वालमीकी रामायण से तो उसका शबरी नाम कहा गया है। वह शबर जाति की नहीं थी और श्रमणी अर्थात् तापसी थी-
"श्रमणी शबरी नाम काकुत्स्थ चिरजीविनी "
( वा० रा० ३।७३।२६ )
श्रमणी का तिलककार ने तापसी अर्थ ही किया है।
वहीं उसको 'धर्मसंस्थिता' भी कहा गया है-
"श्रमणी धर्मसंस्थिताम् "
( वा० रा० ३।७४।७)
उसने राम को यथाविधि अर्घ्य, पाय, आचमन आदि अर्पित किया-
पाद्यमाचमनीयं व सर्वं प्रादाद्यथाविधि ।"
( वा० रा० ३।७४।७ )
श्री राम ने भी उसे तपोवने कहकर संबोधित किया था -
( वा० रा० ३।७४।८ )
उसके तप एवं नियमों के सम्बन्ध में कुशल प्रश्न किया था। वहाँ उसको "सिद्धा सिद्धसम्मता" भी कहा गया है।
अतः उसका शबर जाति का होना और झूठे फल देना आदि प्रामाणिक न होकर प्रेमस्तुत्यर्थ ही हैं। मैंने विविध तन्य फल आपके लिए संचित किये हैं-
" मया तु संचितं वन्यम्"
( वा० रा० ३।७४।१७ )
☀️यही वस्तुस्थिति है कि न तो वह भीलनी थी और न उसने जूठे फल खिलाये थे।
🌸अतः इस प्रकार हमने दोनो बातें सप्रमाण सिद्ध की , माता शबरी ब्राह्मणी थी एवं उन्होंने प्रभु श्री राम को उच्छिष्ट फल नहीं खिलाए थे🌸
Major source:-
धर्म सम्राट् स्वामी करपात्री जी महाभाग द्वारा लिखित
"रामायण मीमांसा"
nigrahacharya ji ne ek video mein kaha tha ki bhgwan ram ne mata shabrai ke juthe fruits khaye the and mata shabri bhil jati ki hi thi
ReplyDeletehttps://youtu.be/A8SkqF-p4yQ <- link of that video