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जन्माष्टमी व्रतविधि: Janmashtami Vrat Vidhi

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देवा ब्रह्मादयो येन स्वरूपं न विदुस्तव ।  अतस्त्वां पूजयिष्यामि मातुरुत्सङ्गवासिनम् ॥ ब्रह्मादि देवता जो आप के स्वरूप को नहीं जानते हैं, इस लिए माँ के गोद में रहने वाले आप की पूजा करूँगा । अथ पूजा विधी प्रारभ्यते:- प्रातः काल प्रभु स्मरण के साथ उठकर नित्य क्रिया की समाप्ति के पश्चात् शुद्ध चित्त आसानरूढ हो प्राच्योन्मुख(east faced) हो पवित्रा भाव से प्रभु कृपा प्रसादार्थ और पाप ताप के शमन हेतु व्रत का संकल्प ग्रहण करें और उसके पश्चात् यथासंभव अन्न का ग्रहण न करें। वासुदेवं समुद्दिश्य सर्वपापप्रशान्तये ।  उपवासं करिष्यामि कृष्णाष्टम्यां नभस्यहम् ॥ आजन्ममरणं यावद्यन्मया दुष्कृतं कृतम् । तत्प्रणाशय गोविन्द प्रसीद पुरुषोत्तम ॥ तदनंतर इस प्रकार का चित्र या मूर्ति को बनवावे (लगाए) पलंग पर सोई हुई देवकी के स्तनों को पीती हुई श्रीकृष्ण की प्रतिमा को रख कर जयन्ती होने पर तो दूसरी देवकी के गोद में दूसरी श्रीकृष्ण- मूति को रख कर पलंग पर बैठी देवकी के चरण को दबाती हुई लक्ष्मी को रख कर दिवाल आदि में तलवार लिए वसुदेव, नन्द, गोपी और गोपों को बनाकर दूसरी जगह पलंग पर उत्पन्न कन्या के साथ यशोदा की प्रति